ब्रह्म समाज राजा राममोहन राय ने 1829 ई में ब्रह्म सभा नाम से एक नए समाज की स्थापना की । जिसे आजे चलकर ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया। राजा राममोहन राय की उस परम्परा को 1843 के बाद देवेंद्रनाथ ठाकुर ने आगे बढाया । उन्होंने इस सिद्धांत का खंडन किया की वैदिक ग्रंथ अनुल्लघनिय हैं।
1866 के बाद इस आंदोलन को केशव चन्द्र सेन ने जारी रखा।
आदि ब्रह्म समाज (ब्रह्म समाज के विभाजन के बाद) इसकी स्थापना 1866 में आचार्य केशव चन्द्र सेन कलकता में की गई जिसका उद्देश्य स्त्रियो की मुक्ति , विद्या का प्रसार ,सस्ते साहित्य को बांटना महा निषेध , दान देने पर अधिक बल देने था।
1878 में केशव चन्द्र सेन ने अपनी तेरह वर्षीय अल्पायु पुत्री का विवाह कूचबिहार के महाराजा केंसाथ वैदिक रीति रिवाज के अनुसार करने के कारण इस समाज में एक ओर विभाजन हो गया। केशव के अधिकतर समर्थको ने अलग होकर 1878 में एक अलग संस्था "साधारण ब्रह्म समाज" की स्थापना कर ली।
महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार
बम्बई प्रांत में धार्मिक सुधार कार्य का आरंभ 1840 में परमहंस मंडली ने किया । इसका उद्देश्य मूर्तिपूजा तथा जाति प्रथा का विरोध करना था । पश्चिम भारत के पहले धार्मिक सुधारक संभवतः गोपाल हरि देशमुख थे जिन्हें जनता ' लोकहितवादी ,' कहती थी।
प्रार्थना समाज
इसकी स्थपना 1867 में बम्बई में आचार्य केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेंव गोविंद रानाडे , डॉ आत्माराम पांडुरंग और चंद्रावरकर आदि के नेतृत्व में हुई । इसका उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध , स्त्री पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि , विधवा विवाह , स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन , देना आदि था।
इसी संस्था के सहयोग से कालांतर में दलित जाति मंडल , समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। पंजाब में इस समाज का प्रचार प्रसार में दयाल सिंह प्रन्यास ने किया।
रामकृष्ण मिशन
इसकी स्थापना 1896-97 में स्वामी विवेकानंद ने सर्वप्रथम कलकत्ता के समीप बेलूर में की।
नरेंद्र नाथ दत (स्वामी विवेकानंद 1863-1902) संस्थापक ओर रामकृष्ण परमहंस मुख्य प्रेरक थे।
1893 मै स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुईं धर्म संसद में भाग लेकर दुनिया को भारतीय संस्कृति ओर दर्शन से अवगत कराया।
महाराज खेतड़ी के सुझाव पर नरेंद्र नाथ ने अपना नाम स्वामी विवेकानंद नाम रखा था।