11 Jan 2021

भारत में जनजातीय आंदोलन

जनजातीय  आंदोलन - जनजाति से आशय ऐसे नृजातीय समूह से होता है को किसी देश विशेष की मुख्य धारा  अलग होता है  । आधुनिक भारतीय इतिहास में  जनजाति शब्द का प्रयोग भारतीय  समाज की मुख्य  विशेषता- जातीय  व्यवस्था  से भिन्न समाज के लिए किया जाता था, जनजातीय  समुदाय भारतीय जीवन की मुख्य धारा के  पर्थक थे। इन समाजों  में सामाजिक एकता विद्यमान थी जबकि भारत के मुख्य समाज में सामाजिक स्तर पाया जाता था जबकि  जनजातीय समाज मुख्य समाज से पृथक रहा माना जाता है किन्तु  यह पूर्णतः  पृथक कुछ शिकार  एवम् खाद्य संगृहक  जनजाति के संदर्भ में ही सत्य है। इनके अतिरिक्त अन्य जनजातीय समाज प्राचीन काल से ही भारतीय समाज के अंग रहे है, इस कारण  इन समाजों में हिंदू समाज की अन्य विशेषताएं पाई जाती है क्योंकि ये जनजातीय  ऐतिहासिक काल से ही  मुख्य समाज के साथ  जुड़ी है। आधुनिक भारत में जनजातीय  द्वारा कृषकों एवं अन्य समुदाय की तुलना में अधिक विद्रोह  किया जाता था ओर उनके विद्रोह हिंसक भी होते थे। आधुनिक भारत में ये जनजातीय अपना निर्वाह स्थयी एवं अस्थाई (झूम) कृषि  खानो, कारखानों में  श्रमिक के रूप में करते थे।
अंग्रजों ने 18 वी शताब्दी एवम् 19 शताब्दी के प्रारंभ में साम्राज्यवादी  नीति का अनुसरण करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक भागों को अपने अधिकार में कर लिया। अंग्रेजो  ने जनजातीय व्यवस्थाओं के अलगाव को भी समाप्त किया ओर उन्हें पूर्ण  ऑपनिवेशिक  परिधि के अन्तर्गत के गए । अंग्रजों  द्वारा  कृषि के  वाणिज्यरण एवं अन्य आर्थिक नीतियों के चलते जनजातियों की अर्थ्यवस्था में अनेक बाहरी लोग  जैसे साहूकार ठेकेदार , व्यापारी  आदि प्रवेश करने लगे। ये जनजाति इन बाहरी लोगो को  हिन दृष्टि से देखती थी। अंग्रजों ने अपने इन मध्यस्थ  से जनजातीय  क्षेत्रों में भी ऑपनीवेशिक  अर्थ्यवस्थाओं का विकास किया जिससे जनजातीया शोषण के चक्र में फंस गयी। अनेक बार अंग्रेजो ने  जनजातीय समाज के मुखिया को जमींदार के रूप में मन्यता प्रदान कर दी गई। नई भू राजस्व व्यवस्था में  जनजातियों पर अनेक कर लाद दिए गए। अनेक जनजातीय समाज भी कृषक से किराएदार के रूप में परिवर्तित  हो गए। अंग्रेज़ अधिकारी पुलिस एवं अन्य कर्मचारी  भी जनजातीय पर आत्याचार  करते थे इससे जनजातीय अर्थव्यवस्था  विघटित  होने लगी थी और जनजातीय  संस्कृति भी विलुप्त होने लग गई थी।।
जनजातीय लोग अंग्रजों को अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। जनजातीय लोगो का मनना था कि अंग्रेजो ने उनकी सता का हरण कर लिया है।
जनजातीय लोगो ने अंग्रेजो के विरूद्ध विद्रोह करने की ठान ली। क्योंकि जनजातीय लोग प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते थे ओर झूम खेती करते थे पर अंग्रेजो के आने से जनजातीय लोगो पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए, जो जनजातीय लोगो को पसंद नी आया ।
 विद्रोह जा स्वरूप - आधुनिक भारतीय इतिहास में  भारत के लगभग सभी क्षेत्रो में हुए जनजातीय  विरोध आंदोलन का स्वरूप एक समान रहा है। जनजातियां किसी एक समूह से संबंधित होती थी। इसलिए  जनजातीय  आंदोलन किसी क्षेत्र से संपूर्ण  जनसमुदाय  से  सम्बन्धित होती थी।  इन आंदोलनों में किसी क्षेत्र  विशेष का संपूर्ण जन समुदाय आंदोलित हो उठता था। जनजातीय  समुदाय  खुद को  एक विशिष्ट पहचान के रूप में मानते थे।  एक जनजाति दूसरी जनजाति में तब तक आक्रमण नहीं करती थी जब तक वह उनके शत्रु की सहायता न कर रही हो, लगभग सभी  जनजातीय आंदोलन बाहरी लोगों के विरोध में हुए, किंतु इन आंदोलनकारी ने उन गेर  जनजातिय गरीबों के साथ कभी हिंसा नहीं की को जनजातीय गांव की अर्थ्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका भूमिका निभाते थे, जैसे तेली कुम्हार लोहार बुनकर  आदि बाहरी लोगो के नौकर थे। अनेक बार इन गेर जनजातीय लोगो ने  आंदोलन के दौरान विरोधी जनजातीय का साथ दिया। इन आंदोलनों ने बाहरी लोगो पर अचानक  आक्रमण किया एवम् उनकी संपति  लूटकर उन्हें गांवों से बाहर निकाल दिया। 
 कोल विद्रोह- (1820-1837)  यह विद्रोह छोटा नागपुर  क्षेत्र  में कोल जनजाति की द्वारा उनकी भूमि बेदखली  एवम् अन्य अत्याचारों के कारण किया गया। उनकी भूमि  मुस्लिम एवम् सीखो के पास चली गई थी परिणामस्वरूप कोलो ने 1831 में बाहरी लोगो पर आक्रमण  कर दिया। धीरे धीरे यह  विद्रोह  हजारीबाग सिंह भूम रांची पलाभद्र आदि क्षेत्रों में फैल गया अंग्रेजो ने एक सैन्य अभियान के द्वारा इस विद्रोह का दमन कर दिया।। 
 संथाल विद्रोह -  संथाल  छोटा नागपुर की एक अत्यंत महत्वपूर्ण जनजाति रही है। अंग्रेजो द्वारा  इस क्षेत्र में  ओपनिवेशिक अर्थव्यवस्था स्थापित होने से बाहर के लोग आने लगे। इन बाहरी लोगो तत्वों को संथालो ने ' दिकु '(विदेशी) कहा जाता था।  अंग्रेजो एवम्  उनके भारतीय सहयोगी ने यहां वकी अर्थव्यवस्था को छीन भिन कर दिया था।। इन क्षेत्रो में ईसाई मिशनरी भी सक्रिय थी यदपि  इन मिशनरियों ने जनजातीय क्षेत्रो में शिक्षा एवम् स्वास्थ्य सेवाओं का विकास किया। इसके अतिरिक्त अंग्रजों ने संथाल के वन अधिकार भी सीमित के दिए  फलस्वरूप राजमहल जिले में 1856 में संथाल ने दिकू के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। वे नहीं चाहते थे  कि दिकू लोग उनके क्षेत्रो में प्रवेश ना करे इसलिए संथाल ने जमींदारों साहूकारों , ओर बिट्रिश अधिकारियों पर हमला करना आरंभ कर दिया। संथाली ने सिद्धू ओर कान्हो के नेतृत्व में एक व्यापक आंदोलन की योजना बनाई। उन्होंने विविध गांवों में आंदोलन के लिए सूचनाएं भेजी ओर साहूकारों पर आक्रमण किया गया। साहूकार की संपति उनके दस्तावेजों सहित जला दी गई क्योंकि उनका मानना था कि ये दस्तावेज ही उनके शोषण का कारण है। सिद्धू ओर कान्हो ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया उनके नेतृत्व में हजारों संथाल एकत्रित हो गए। अंग्रजों ने संथाल की भूमि को रिग्युलेशन डिस्ट्रिक घोषित कर दिया ओर प्रथक इकाई बना दिया ओर संथाल क्षेत्र में शांति स्थापित हो गई।






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