30 Mar 2021

भारत में पत्र पत्रिकाओं का विकास


भारत में प्रकाशित पत्र पत्रिकाएं


भारत में पत्रिकाओं का विकास पुर्तगालियों के  आने के बाद शुरू हुआ है।  पुर्तगालियों ने सर्वप्रथम गोवा में मुद्रा टंकण की स्थापना की थी

बंगाल गजट  और हिक्की गजट
29 जनवरी 1780 को  इस पत्रिका का संपादन हुआ।  यह सप्ताहिक पत्रिका थी और अंग्रेजी भाषा में थी।  इसके संपादक  10 आगस्टक  ही थे।  यह भारत का पहला समाचार पत्र  था।

उदंत मार्तंड  
इस पत्रिका का संपादन  युगल किशोर शुक्ला ने 30 मई 
 1826, में किया।   यह भारत का पहला   हिंदी समाचार पत्र था।  यह सप्ताहिक पत्र था।

बंगदूत 
1829 में  राममोहन राय ने एक साथ चार भाषाओं में बंगाली उर्दू का अंग्रेजी में  यह पत्र छापा।   यह एक साप्ताहिक पत्र था और यह कोलकाता से छपता था

बनारस अखबार
1849 में  जो पत्रकार काशी से प्रकाशित हुआ।  इसके संपादक  राजा शिवप्रसाद थे।  यह हिंदी क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला पहला हिंदी समाचार पत्र था।

समाचार   सुधावर्षण
1854 में  समाचार पत्र कोलकाता से प्रकाशित होता था।    इसके संपादक श्याम सुंदर सिंह थे।   यह प्रथम हिंदी दैनिक पत्र था।

प्रजा हितैषी
यह पत्र  1854 में आगरा से प्रकाशित होता था।  इसके संपादक राजा लक्ष्मण सिंह थे।

तत्वबोधिनी पत्रिका
इसका प्रकाशन  बरेली से होता था।  इसके संपादक  गुलाब शंकर थे।

वृतांत विलास 
 यह मासिक पत्रिका थी  इसका प्रकाशन जम्मू कश्मीर से होता था।

कविवाचन सुधा
इस पत्रिका का संपादन काशी से होता था 
यह एक मासिक पत्रिका है ।  इसके संपादक  भारतेंदु  हरिश्चंद्र थे।

हरिश्चंद्र मैगजीन
1874 में   इसका नाम परिवर्तन कर हरिश्चंद्र चंद्रिका रख दिया।  इसका संपादन भारतेंदु हरिश्चंद्र ने किया यह बनारस  से  प्रकाशित होती थी।

बालाबोधिनी
1874 में  बनारस संपादक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने केवल महिलाओ के लिए  हिंदी में  साहित्यिक पत्रिका छापी।  यहां पत्रिका मासिक थी।







23 Mar 2021

भारत में शिक्षा का विकास

प्राचीन भारत में शिक्षा की वृद्धि और विकास का  इतिहास
18 वीं शताब्दी में  भारत में हिंदू और मुस्लिम शिक्षा केंद्र   लुप्त हो गए थे।  देश में अनेक राजनैतिक उथल-पुथल के कारण  ऐसी अवस्था हो गई थी जी शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही विद्या उपार्जन में ना लग सके। 21 फरवरी 1784 को  लिखे एक पत्र में वारेन हेस्टिंग्स ने   कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि उत्तर के सभी प्रमुख नगरों में विद्यालय धन जन और भवन सभी प्रकार के अभाव   खराब अवस्था में है।
यद्यपि कंपनी 1765 से राज्य करने लगी थी परंतु उसने समकालीन इंग्लैंड की परंपरा के अनुसार विद्या आभार निजी हाथों में ही रहने दिया फिर भी समय-समय पर कंपनी के अधिकारी कोट ऑफ डायरेक्टर का ध्यान इस ओर आकर्षित करते रहे। 1781  वारेन हेस्टिंग ने  कोलकाता मदरसा स्थापित किया  फारसी  और अरबी का था।  17 साल का 90 मैं बनारस की ब्रिटिश रेजीमेंट श्री  डंकन के प्रयत्नों के फल स्वरुप बनारस में एक संस्कृत की स्थापना की गई।  जिसका उद्देश्य हिंदुओं के धर्म  और कानून का अध्ययन और  प्रसार करना था। इन   प्राचीन विद्या की प्रचार के लिए किए गए आरंभिक प्रयत्न अधिक सफल नहीं हुए। प्राय  शिक्षक अधिक और विद्यार्थी कम होते थे।
1800  लॉर्ड वेलेजली ने कंपनी के  असैनिक  अधिकारियों के लिए  फोट विलियम कॉलेज की स्थापना की। इस कॉलेज में अंग्रेजी हिंदुस्तानी  कोष  और  हिंदुस्तानी व्याकरण तथा  कुछ अन्य पुस्तकें  प्रकाशित की।  परंतु यह कॉलेज 18 शब्दों में डायरेक्टरों की आज्ञा से बंद कर दिया गया।
1813वके  चार्टर एक्ट  में एक लाख रुपया, भारत में  विद्या प्रसार के लिए रखा गया।  यह धन , साहित्य पुनरुद्धार  और उन्नति के लिए  भारत के स्थानीय विद्वानों
को प्रोत्साहन देने के लिए  और अंग्रेजी  देशवासियों में  विज्ञान के आरंभ और उन्नति के लिए निर्धारित किया गया था। कंपनी को अपनी प्रशासनिक आवश्यकता ओं के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी जो शास्त्री और स्थानीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता हो। न्याय विभाग में संस्कृत और अरबी भाषा के गानों की आवश्यकता थी ताकि वे लोग अंग्रेज न्यायाधीशों के साथ  परामर्शदाता के रूप में बैठ सके और हिंदी तथा  मुस्लिम कानून की व्याख्या कर सकें।  भारतीय  रियासतों के साथ पत्र व्यवहार करने के लिए राजनीतिक विभाग को फारसी पढ़े-लिखे व्यक्तियों की आवश्यकता थी। भूमि कर विभाग में देशी भाषाओं के ज्ञाताओं की आवश्यकता होती थी। कंपनी के ऊंचे पदों के कार्यकर्ताओं के लिए अंग्रेजी और देसी भाषाओं का जानना अति आवश्यक था।
पश्चिमी विद्या की लोकप्रियता कब पढ़ना और राजाराम मोहन राय जिन कारणों से फैसला पाश्चात्य और अंग्रेजी भाषा के पक्ष में हुआ था  मुख्यतः आर्थिक।  भारतीय लोग ऐसी शिक्षा चाहती थे जो उन्हें अपनी जीविका उपार्जन करने में सहायता करें। उन्नति शील भारती तत्व भी अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य विद्या का प्रसार चाहते थे। राजा राममोहन राय ने कोलकाता मदरसे बनारस संस्कृत कॉलेज खोलने की सरकार के प्रयत्नों की कड़ी आलोचना की। 
अंगल प्राच्य  विवाद 
लोक शिक्षा की समिति में 10 सदस्य थे। उनमें दो दल थे। एक प्राच्य  विद्या समर्थक दल था  जिसके नेता एच टी  प्रिंसेप  थे। यह लोग प्राची विद्या को प्रोत्साहन देने की नीति का समर्थन करते थे दूसरी ओर मंगल दल जो अंग्रेजी शिक्षा को  समर्थन देता था।  दोनों दलों के बराबर होने के कारण यह समिति ठीक ढंग से कार्य नहीं कर सकती थी।  प्रायः गतिरोध हो जाता था अंत में दोनों दलों ने अपना विवाद निर्णय के लिए  गवर्नर जनरल के सम्मुख रखा। कार्यकारणी परिषद का  सदस्य होने के अधिकार से 2 फरवरी 1835 को  लॉर्ड मैकाले  ने आंग्ल  दल का समर्थन किया। 
विलियम बेंटिक की सरकार ने 7 मार्च 1835 के प्रस्ताव  मैकाले का दृष्टिकोण अपना लिया कि भविष्य में कंपनी की सरकार साहित्य को अंग्रेजी माध्यम द्वारा उन्नत करने का प्रयत्न करें और सभी धन रशिया  इसी को दी जानी चाहिए ऐसा आदेश दिया।
जो मैकाले की पद्धति एक क्रमबद्ध प्रयत्न था अंग्रेजी सरकार ने भारत  के उच्च वर्ग को अंग्रेजी माध्यम द्वारा शिक्षित करने का प्रयत्न किया। मैकाले का उद्देश्य जनसाधारण को शिक्षित करना नहीं था। वॉइस पर से जानता था कि सीमित साधनों के समस्त जनता को शिक्षित करना  असंभव  है। वह वीप्रिवेशन  सिद्धांत में विश्वास करता था की अंग्रेजी पढ़े  लिखे लोग एक  दुभाषी  श्रेणी के रूप में कार्य करेंगे  और भारतीय भाषाओं और साहित्य को समृद्ध साली बनाएंगे और इस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान तथा साहित्य का ज्ञान जनसाधारण तक पहुंच जाएगा। इस प्रकार  मैकाले कि इस सिद्धांत का  प्राकृतिक परिणाम भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी भाषा के सहायक के रूप में बढ़ावा देना था।
इसके पश्चात सरकार ने देशी भाषाओं के विकास के लिए कुछ  प्रयत्न  किए और इन भाषाओं के साहित्य का विकास जनता की आवश्यकता और तथा उनकी कल्पना शक्ति पर  छोड़ दिया।



21 Mar 2021

जूस की दुकान का बिजनेस


जूस की दुकान का बिजनेस कैसे करें

किसी भी बिजनेस करने से पहले  कुछ बातों को  जान लेना जरूरी होता है  अगर हम  इन बातों पर  ध्यान नहीं देते हैं तो  हमारा बिज़नेस  ज्यादा  तरक्की नहीं कर पाता।

आज हम बात कर रहे हैं जूस की दुकान का बिजनेस  कैसे  करें ।

जूस की दुकान की शुरुआत कैसे करें?

यह जरूरी नहीं है कि शुरुआत में ही आप  एक बड़ी दुकान खोलने  आप एक  छोटी सी  दुकान खोल कर भी इस बिजनेस की शुरुआत कर सकते हैं छोटी छोटी सी शुरुआती बड़ी  बन जाती है।  शुरुआत में ज्यादा पैसा लगाने की जरूरत नहीं है   बल्कि धीरे-धीरे शुरुआत करनी चाहिए।


  जूस की दुकान  खोलने से पहले कई बातों का ध्यान देना जरूरी होता है जैसे - 

स्टेप वन  लोकेशन

अगर आप जूस की  दुकान खोलना चाहते हैं तो  आपके पास  एक अच्छी लोकेशन का होना  जरूरी होता है। 

लोकेशन किस प्रकार की होनी चाहिए

जूस की दुकान  के लिए बहुत सारी लोकेशनहै जैसे

1.  जिम  -   जूस की दुकान के लिए सबसे  अच्छी लोकेशन जिम है।  क्योंकि  जिम में बहुत से लोग  सुबह  से लेकर शाम तक  वर्कआउट करने आते हैं।   लोकेशन में अगर आप  जूस की दुकान खोल  तो सबसे ज्यादा फायदा होगा।

एक बात ध्यान में रखें  जिम  के आसपास  ज्यादा जूस की दुकान ना हो क्योंकि इससे आपको ज्यादा फायदा नहीं हो सकता अगर एक दो जूस की दुकान है  तो आप जूस शॉप खोल सकते हैं।

कॉलेज-   जूस की दुकान के लिए रूसी सबसे अच्छी लोकेशन  कॉलेज के आस पास  है क्योंकि यहां पर भीड़ ज्यादा रहती है।

3 मार्केट्स-  तीसरी सबसे अच्छी लोकेशन मार्केट है क्योंकि इस लोकेशन में हमेशा भीड़ रहती है।

पार्क-   यह लोकेशन भी  जूस की दुकान के लिए अच्छी है।  क्योंकि यहां पर सुबह शाम बहुत से लोग आते हैं।

5-  पर्यटन स्थल-  आप अपनी जूस की दुकान  पर्यटन स्थल के आसपास भी हो सकते हैं क्योंकि  इस स्थान पर बहुत से लोग  अलग राज्यों से आते हैं और कुछ लोग विदेशों से आते हैं  लोकेशन का  यह फायदा है  कि यहां से   ज्यादा लाभ मिलेगा।

ये  पाच लोकेशन  जूस की दुकान के लिए सबसे अच्छी है।    एक बात ध्यान में रखें आप कभी भी दुकान किसी गली में  ना खोलें  इससे आपको फायदा नहीं होगा क्योंकि कस्टमर   के आने में समस्या होती है।

लोकेशन चुनते समय इस बात का ध्यान रखें कि उस लोकेशन में कितनी जूस की दुकान है और वह कितने समय से हैं और उनकी मार्केटिंग  कितनी है।


स्टेप 2-ओजर

जूस की दुकान के लिए औजार का होना भी जरूरी है।  जूस बनाने के लिए आपके पास अच्छी मशीनों का होना जरूरी है  जैसे  जूसर मशीन, रेफ्रिजरेटर  आदि।  औजार का  अच्छी कंपनी का होना बहुत जरूरी है क्योंकि  यह  औजार का प्रयोग हमेशा करना होता है।


स्टेप-3 मेन्यू

जूस की दुकान के लिए  जूस और शेक  का  मैन्यू  होना जरूरी है।  मैन यू मैन सभी प्रकार के जूस  और उनके नाम तथा उनका मूल्य  लिखा होना  जरूरी है।


स्टेप-4  मार्केटिंग

किसी भी बिजनेस के लिए मार्केटिंग करना जरूरी है  क्योंकि मार्केटिंग करने से  कस्टमर की  संख्या बढ़ती है।

जूस की दुकान के लिए मार्केटिंग कैसे करें


पोस्टर-  आप अपनी जूस   की दुकान का  एक पोस्टर बनवा कर उसे रोड  पर लगा दीजिए या टेंपलेट बनाकर  उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों में  बांट दीजिए।


सोशल मीडिया  आप अपनी जूस की दुकान  का पोस्टर बनाकर  उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं।   

जैसे फेसबुक व्हाट्सएप और  टिविटर  पर शेयर कर सकते हैं।


गूगल एड्स -  जूस की दुकान का  गूगल पर एड्स  सकते हैं।  इससे  आपके  कस्टमर की संख्या  बढ़ सकती है।  ऐड के जरिए    कई लोगों को आप की जूस की दुकान के  बारे में पता लगेगा।

वेबसाइट -  अगर आप  अपनी जूस की दुकान  देश और विदेश तक चलाना चाहते हैं। तो आप  अपनी एक वेबसाइट बना सकते हैं । इस वेबसाइट पर आप  अपनी दुकान का मैन्यू और फोन नंबर डाल सकते हैं।  जब कोई कस्टमर  आपकी दुकान की लोकेशन में आता है  तो  वह आपको  दुकान में आने से पहले ऑर्डर दे देगा।


जूस की दुकान में ज्यादा कस्टमर कैसे लाएं

अगर आप अपनी जूस की दुकान में ज्यादा  कस्टमर लाना चाहते हैं   तो  आपको  इसके लिए कुछ कार्य करने होंगे जैसे

1-  मूल्य कम करना-   दूसरी दुकान की तुलना में अपनी दुकान में  जूस का कम मूल्य रखना। इससे  यह फायदा होगा  उस दुकान के कस्टमर  आपकी दुकान में आने लगेंगे।

2-  साफ सफाई  अगर आप अपनी दुकान में ज्यादा कस्टमर लाना चाहते हैं तो आपको  अपनी दुकान में साफ सफाई और  जूस के गिलास ओर फल का साफ होना  जरूरी है। अगर आपकी दुकान में साफ सफाई नहीं है और मक्खियां या  गंदगी रहती है तो  लोग आना तक नहीं करेंगे। 


जूस की दुकान  से ज्यादा  लाभ  कैसे कमाए

अगर आप अपनी दुकान से  ज्यादा लाभ कमाना चाहते हैं तो  आप अपनी दुकान जमेटो  या  जूस की होम डिलीवरी करना शुरू कर दीजिए  क्योंकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो घर से बाहर जाना या  जूस बाहर पीना पसंद नहीं करते हैं।

दूसरा उपाय कस्टमर की संख्या में तेजी से  वृद्धि करना।


जूस के बिजनेस के फायदे

जूस के बिजनेस का सबसे बड़ा फायदा यह है  यह बिजनेस  पूरे साल भर चलता है  क्योंकि यह लोगो की हेल्थ से जुड़ा है।  इस बिजनेस में  रिस्क नाम मात्र का है।  फलों की सीजन की टाइम में  फल का  स्टॉक  आपको अपने पास रख लेना चाहिए।  जूस बेचने के साथ-साथ अपनी दुकान में  फल  भी बेच  सकते हैं।  जूस ओर  फलों के साथ  आप अपनी दुकान में  मुरब्बा भी रख सकते हैं।

अगर आपकी एक दुकान अच्छे से चल गई तो आप अपनी दोस्ती दुकान दूसरी लोकेशन पर खोल सकते हैं। इससे धीरे-धीरे  आप अपनी दुकान की ब्रांच खोल सकते हैं जगह-जगह। अगर आपका  जूस की बिजनेस  तेजी से बढ़ गया तो आप अपना एक एप्प बना सकते है  जिससे लोग ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।

  

कोई भी  बिजनेस हो  शुरुआत में  थोड़ा बहुत  समस्या आती है। यह एक ऐसा बिजनेस है जिसमें कोई समस्या नहीं है ओर पैसा भी कम लगता है। 




15 Mar 2021

गोरखा काल के समय लगाए गए कर

गोरखा काल में लगाए गए कर

किसी भी  अथवा शासक के लिए  राजकोष भरना आवश्यक होता है। बिना  राजकोष के राज्य नहीं चलता है।  गोरखा शासक ने इस नीति का पालन किया और  रैयत पर अनेक कल लगाए ।  यह कर गोरखा की का प्रमुख साधन थे।  उनसे पूर्व  उत्तराखंड में  राज कर रहे चंद शासकों ने  36 रकम 32 कलम  वाले अनेक का कर  लगाई थे। चंद्र शासकों में लक्ष्मीचंद ऐसा राजा   जिसके करो  के भय से  लोगों ने छतों में मिट्टी डालकर साग सब्जी लगाना प्रारंभ कर दिया।  गोरखा ने कुछ कर पुराने  और कुछ तत्कालीन कारणों की ओर ध्यान देते हुए कुछ   नए कर लगाए । नए करो  में   ब्राह्मणों में "कुशही"  नामक का लगाया जो जूलिया 260 नाली तक जमीन हत्याई हुए ब्राह्मणों पर  ₹5 प्रति मवासा लगाया गया। गोरखा  ने  कुमाऊं व गढ़वाल  में  छत पर चढ़ने वाली महिला  को  दंडित करने के लिए   जुर्माने के रूप में कर लगाया। 
गोरखा द्वारा उत्तराखंड में कई प्रकार के कर लगाए गए थे जैसे
पुगड़ी कर  जो एक प्रकार का भूमि कर था। इस ग
कर  से लगभग डेढ़ लाख रुपया सालाना की आय  होती थी। सैनिकों का वेतन किस कर से दिया जाता था।

सलामी कर एक प्रकार का नजराना  कर था। 

टीका भेंट शुभ अवसरों शादी विवाह के समय इस कर को लिया जाता था।
 
तीमारी कर    यह कर   फौजदार को चारा  आना  व सूबेदार दो ना देना पड़ता था।    1811 में काजी बहादुर भंडारी वह  दशरथ खनवी  ने  दर तय की थी।  किंतु फिर भी इसका पालन नहीं होता था।

पगरी या पगड़ी   गोरखा की  सनदो  में  का उल्लेख बार बार आया है।  यह संभवत   जमीन व  जायदाद हस्तांतरण में जमीन प्राप्त करने वाले व्यक्ति को देना पड़ता था और यह राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था।

मांगा  प्रत्येक नौजवान से ₹1 कर के रूप में लिया जाता था।
 सुवांगी  दस्तूर  यहां प्रत्येक बिसी भूमि पर एक रुपया लिया   जाता था।

मेजबानी दस्तूर यह ढाई आना  होता  था।

सोनिया फागुन  उत्सव का खर्चा।  इसमें    भेस व बकरी लिए जाते थे।   गोरखा लोग  सावन, दसाई दशहरा व  फागुन के उत्सव में भैंसों की बलि देते थे   उनके मांस  को बड़े चाव से खाते थे।

तान  कर इसे  कपड़ा कर भी कहते हैं।  हिंदू और भूटिया से लिया जाता था।

मिझारी  शिल्प कर्मियों तथा जगरिया ब्राह्मणों से से लिया जाता था।

मरो  पुत्र विहीन  व्यक्ति से यह कर लिया जाता था।

रहता  ग्राम छोड़कर भागे हुए लोगों पर यह कर लगाया जाता था।

बहता   छिपाई गई संपत्ति  पर यह कर लिया जाता था।

घी कर   दुधारू पशुओं मालिक से यह कर  लिया जाता था ।

मोकर  यह प्रति परिवार दो रुपया कर था। इसे चनदो ने भी लगाया था।  इसे घरही पिछाई भी कहते है।

अधनी  दफ्तरी  यह राजस्व का काम करने वाले कर्मचारियों के लिए खास जमीदारों से लिया जाता था

जान्या सुन्या  राज कर्मचारियों से   लगान के बारे में पूछने पर कर देना पड़ता था।

उपरोक्त करो के अलावा ऊपरी रकम,  बक्शीश, कल्याण धन, केरु,  घररू,  खुना, आड़ी  कर भी लिया जाता था। रात को चुकाने में असमर्थ व्यक्तियों को मैदान की अलग-अलग मंडियों में ले जाकर दस से  लेकर बिस  की कीमत में बेचा जाता था। जिन्हें प्रयोग हरिद्वार की मंडी पर बेचा जाता था। गोबर और पूछिया  नाम के के भी थे।  हेडी ओर मेवाती   भाबर में  दोनिया नाम का कर  पहाड़ी पशु चारों को से वसूल करते थे।




13 Mar 2021

सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर
 सचिन तेंदुलकर भारत के एक महान क्रिकेटर है, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से  सम्मानित होने वाले  वह   पहले खिलाड़ी और सबसे  कम उम्र के व्यक्ति हैं।

 जन्म की तारीख  24 अप्रैल 1973
 जन्म स्थान  मुंबई
 पिता का नाम  रमेश तेंदुलकर
 माता का नाम   रजनी  तेंदुलकर
 पत्नी का नाम अंजली तेंदुलकर
 बल्लेबाजी की शैली  दाएं हाथ
 गेंदबाजी की  शैली  दाएं हाथ लेग ब्रेक

 सचिन तेंदुलकर के उपनाम 
 सचिन तेंदुलकर को कई नाम से जाना जाता है  क्रिकेट के भगवान,  मास्टर  ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, लिटल  चैंपियन।

 सचिन तेंदुलकर का प्रारंभिक जीवन
 सचिन तेंदुलकर का जन्म मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ है। इनकी शिक्षा  मुंबई में  हुई है। सचिन तेंदुलकर  के बड़े भाई अजीत तेंदुलकर ने सचिन को क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया था। सचिन के  एक भाई  नितिन तेंदुलकर और बहन  सविताई  तेंदुलकर है।
 सचिन तेंदुलकर ने  अपने कोच रामाकांत अचरेकर  के साथ अपने  क्रिकेट के जीवन की शुरुआत की।

 सचिन तेंदुलकर ने अपना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच 18 दिसंबर 1989 को पाकिस्तान के खिलाफ खेला। सचिन तेंदुलकर ने पहला टेस्ट मैच 13 नवंबर 1989 में  पाकिस्तान के खिलाफ खेला था और T20 मैच  जिंबाब्वे के खिलाफ  खेला था। सचिन तेंदुलकर ने अपना अंतिम मैच 2013  में  खेला

 सचिन तेंदुलकर की वर्ल्ड कप में भूमिका 
 सचिन तेंदुलकर ने वर्ल्ड कप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सचिन तेंदुलकर ने कुल 6 विश्वकप खेले हैं 1992,  1996,  1999,  2003,  2007, और 2011,
 सचिन तेंदुलकर ने 2003 में   खेले गए वर्ल्ड कप  में  11 मुकाबलों में  673  रन बनाए। यह टूर्नामेंट की सबसे अधिक रन थे।
 सचिन तेंदुलकर ने पांचों वर्ल्ड कप में 6 शतक लगाए हैं उन्होंने अपना पहला शतक  1996 के वर्ल्ड कप में  केन्या के खिलाफ लगाया था। 2011 में हालैंड के खिलाफ 18 रन बनाने के साथ  वर्ल्ड कप में अपने 2000 रन पूरे किए। सचिन ने  पांच  चौके   उड़ाते हुए यह उपलब्धि हासिल की।
 सचिन  तेंदुलकर ने विश्व कप में कई रिकॉर्ड बनाए हैं।
 2011 में सचिन तेंदुलकर ने अपना अंतिम वर्ल्ड कप खेला था   और इस वर्ल्ड कप में इंडिया का फाइनल मुकाबला श्रीलंका से हुआ था जिसमें। इंडिया को जीत मिली थी। 2011 के वर्ल्ड कप जीत जाने के बाद भारतीय टीम के सदस्यों ने सचिन तेंदुलकर को कंधे में उठाकर  मैदान का  लेफ ऑफ ऑनर लगाया था। 2011 के वर्ल्ड कप में सचिन तेंदुलकर  से जुड़े लमहे को   "कैरीड  ऑन द शोल्ड्स ऑफ नेशन" शीर्षक दिया गया।
 सचिन तेंदुलकर का 2011 वर्ल्ड कप विनिंग मुमेंट लारेस अवार्ड में शामिल हुआ था।


 सचिन तेंदुलकर के वर्ल्ड कप में कुल कितने रन है?
 सचिन तेंदुलकर वर्ल्ड कप में कुल 2278   रन बनाए हैं जिसका औसत 56.95  है।

 सचिन तेंदुलकर को मिले कुछ अवॉर्ड
 सचिन तेंदुलकर को कई अवार्ड मिले हैं जिसमें से कुछ अवार्ड प्रमुख है, सचिन तेंदुलकर पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें 2014 में भारत रत्न पुरस्कार मिला है और यह सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं जिन्हें यह अवार्ड प्राप्त हुआ है।
 सचिन तेंदुलकर को  राजीव गांधी खेल रत्न से भी सम्मानित किया गया है और यह पहले क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्हें    1997 में राजीव गांधी खेल रत्न प्राप्त हुआ है। 2008 में सचिन तेंदुलकर को पद्म विभूषण पुरस्कार मिला है। 1999 में  सचिन तेंदुलकर को पद्मश्री अवार्ड मिला  2004, 2007, 2010 में विजडन   क्रिकेटर्स  ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला। 1994 में  तेंदुलकर को अर्जुन अवार्ड मिला,  2001 में महाराष्ट्र भूषण अवार्ड प्राप्त हुआ।
 2010 में सचिन तेंदुलकर को  पीपुल्स चॉइस  अवार्ड प्राप्त हुआ। 2011  में  सचिन तेंदुलकर को   क्रेस्टाल इंडियन क्रिकेटर ऑफ द ईयर  का अवार्ड मिला।

सचिन तेंदुलकर की आय
सचिन तेंदुलकर इंडिया   टीम के  ग्रेट ए  में  शामिल थे। तो  उनकी वार्षिक आय  7 करोड़ सालाना थी।  सचिन तेंदुलकर की  अभी से ज्यादा इनकम विज्ञापन द्वारा होती है।