21 Jan 2021

उत्तराखंड का इतिहास प्राचीन काल से वर्तमान तक

उत्तराखंड एक हिमालिय राज्य है ये देश का 11 हिमालय राज्य है। उत्तराखंड में अनेक जातियों और राजवंश ने राज किया। यहां की प्राचीन जाति कोल किरात थी । भोटिया को भी यहां को प्राचीन जनजाति माना जाता है । उत्तराखंड में नागो ने भी राज्य किया था चमोली से नाग जाति का लेख मिला है। उत्तराखंड में बौद्ध धर्म के अनयायियों को तपस्या करने के लिए भेजा जाता था। 
उत्तराखंड से कई सारे प्राचीन गुफा ओर शैल चित्र मिले है अल्मोड़ा से लघुउदियार जहा मानव ने नृत्य करते हुए चित्र अंकित है जो सुयाल नदी के किनारे स्थित है। चमोली ओर उत्तरकाशी से भी गवरखा गुफा जहा लाल रंग की आकृति मिली है।
समुदरगुप्त की प्रायग प्रशस्ति में उत्तराखंड का उलेख मिलता है । हेनसाग ने भी हरिद्वार को मायापुरी कहा है।

उत्तराखंड का सबसे प्राचीन राजवंश कुंडिद राजवंश था । इसके ज्यादा अभिलेख नही मिले है कुछ मुद्राएं प्राप्त हुई है जैसे अल्मोड़ा प्रकार की मुद्रा , छत्रेश्वर प्रकार की मुद्रा , अमोघभूती प्रकार की मुद्रा ये कुडिंद राजवंश का राजा था। इन मुद्राओं से इस राजवंश की जानकारी मिलती है।
उत्तराखंड का दूसरा प्राचीन राजवंश कत्यूरी राजवंश है इस राजवंश के कई अभिलेख ओर ताम्रपत्र प्राप्त हुए है जैसे बाघनाथ ओर जागेश्वर मंदिर से इस राजवंश के बारे में पता लगता है क्योंकि ये मंदिर कत्यूरी राजाओं ने  ही बनाएये राजा  शिवजी के  भक्त थे। कत्यूरी राजा का पहले निवास स्थान चमोली में था लेकिन बाद में ये बागेश्वर में आकर बस गए। इसके पीछे इतिहासकारों  ने कई कारण बताए है । कत्यूरी राजा भूदेव ने बौद्ध धर्म  का विरोध किया था। कत्यूरी राजाओं ने महाराजधिराज की उपाधि धारण की थी।  बाद में कत्यूरी राजवंश का विभाजन हो गया एक शाखा अस्कोट पिथौरागढ़ जा कर बस गई । उत्तराखंड के इतिहास में कत्यूरी शासनकाल को स्वर्णकाल  माना जाता है। कत्यूरी राजवंश का कैसे पतन हुआ इसके कई कारण थे अंतिम कत्यूरी  शासक वसंतदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोम चंद नाम के एक व्यक्ति से किया था। 
कत्यूरी के बाद उत्तराखंड में चंद राजवंश ने शासन किया ओर वहीं गंडवाल में परमार राजवंश राज कर रहा था
चंद राजवंश स्वतंत्र शासक नहीं थे  ये डोटी के शासक को कर देते थे। चंद राजवंश के स्वतंत्र शासक भारती चंद था। इसने डोटी के शासक को कर देने से मना कर दिया था।  चंद राजाओं का पहला ताम्रलेख अभय चंद का है। चंद राजा सोमचंद झुसी से आया था।  चंद राजाओं ने मुगल की अधीनता स्वीकार की थी ।  चंद राजा ने मुगल राजकुमार दारा शिकोह को कुमाऊं में शरण नहीं दी क्योंकि चंद राजा को डर था कि कहीं मुगल उन पर आक्रमण ना कर दे इसलिए चंद शासक ने मुगल राजकुमार को शरण नहीं दी ओर कहा की असली राजा तो गड़वाल में बैठा है मुगल राजकुमार दारा शिकोह परमार राज के पास चला गया ओर उसे वहा शरण मिल गई।
चंद राजा ने जनता पर 36प्रकार के कर लगाए थे।
 चंद राजाओं ने कई किलो का निर्माण किया जैसे खगमरा का किला , लाला मंडी का किला , बासुकी का किला, आदि किले बनाए साथ ही कई मंदिर का निर्माण का निर्माण किया जैसे अल्मोड़ा में नंदा देवी का मंदिर गोलजू देवता का मंदिर चमपवात में कई सारे मंदिर का निर्माण किया। चंद काल के समय में ही उत्तराखंड में पंचायत व्यवस्था शुरू हुई। मुगल शासक ने बाज बहादुर की उपाधि दी। नायक जाति का उदय भी चंद काल में हुआ इसका कारण यह था कि भारती चंद ने 10 वर्ष तक डोटी के शासक से युद्ध किया ओर इस युद्ध में कई सैनिकों के स्थानीय महिलाओं से सम्बद्ध बन गए ओर इनकी संतानों को नायक जाति के रूप में जानने लगे।
दूसरी ओर गड़वाल में परमार राजवंश राज कर रहा था परमार राजवंश  उत्तराखंड दो भागो में विभक्त था कुमाऊं ओर गड़वाल 
 गड़वाल में 888 ई में परमार राजवंश की स्थापना हुई इस राजवंश का सबसे शक्तिशाली राजा अजयपाल था इसने 52 गड़ जीत लिए थे इसे उत्तराखंड का अशोक ओर नेपोलियन भी कहा जाता है। इसने नया पाथा बनाया जो माप तोल के लिए प्रयोग किया जाता था।   अजयपाल को उपू गड़ के कफू चौहान ने टक्कर दी थी लेकिन अंत में वो भी अजयपाल से हार्ट गया इसके बाद अजयपाल ने गोरखनाथ संप्रदाय धारण कर लिया।
परमार राजाओं ने मुगल की अधीनता नहीं मानी। इस राजवंश में कई सारे चित्रकार ओर साहित्यकार ओर वेध थे। मोलाराम प्रसिद्ध चित्रकार था। जगतपाल का पहला भूमिदान लेख देवप्रयाग से मिलता है ओर लखन देव का पहला लेख प्राप्त होता है।
लोदियो ने परमार राजवंश के राजा को शाह की उपाधि दी। चंद ओर परमार राजा हमेशा आपस में लड़ते रहते थे
पुरिया को गड़वाल का चाणक्य कहा जाता है।
1790 में कुमाऊं पर गोरखा ने आक्रमण कर दिया। ओर 1792 में गड़वाल पर आक्रमण कर दिया लेकिन सफल नहीं हो पाए  लेकिन 1804  में गड़वाल में भूकंप आ गया ओर गोरखा ने गड़वाल में आक्रमण कर दिया अब दोनों मंडल में गोरखा का अधिकार था। इसमें हर्षदेव जोशी का महत्वूर्ण योगदान था। गोरखा का राजा नेपाल में होता था ओर उत्तराखंड में सूबा के द्वार शासन चलाया जाता था। गोरखा के कर ओर न्याय व्यवस्था बहुत खतरनाक थी। गोरखा ने कई नय प्रकार के कर लगाए इन्होंने ब्राह्मण पर भी कर लगाए ।   कुमाऊं की जनता के लिए ये कर कोई नए नहीं थे इस से पहले चंद राजा ने कई प्रकार के कर लगाए थे। गोरखा ने उत्तराखंड में बहुत लूट पाट की। वो यहां से दासो को नेपाल भेजते थे।
उनका युद्ध का प्रमुख हथियार खुकरी था। अंग्रजों ने भी गोरखा की वीरता की प्रशंसा की। कुमाऊं ओर गड़वाल के राजा गोरखा से परेशान हो गए थे तब सुदर्शन शाह ने अंग्रजों मदद मांगी ताकि गोरखा को यहां से भगा सके ।1815 में गोरखा ओर अंग्रेजो के बीच युद्ध हुआ जिसमें गोरखा को हार का सामना करना पड़ा। संगोली की संधि से ये युद्ध खतम हुआ । काली नदी के पार गोरखा का राज्य माना गया।
1815-1947 तक उत्तराखंड अंग्रेजो के अधीन था अंग्रजों ने यहां बहुत से अच्छे काम किए अंग्रेज़ ही उत्तराखंड में रेल लाइन लाए थे। साथ ही अग्रजो ने भूमि मापन प्रणाली की स्थापना की ओर आलू चाय ओर बागवानी शुरू की। अंगेजो ने कई स्कूल ओर  मिशनरी खोलो। अंग्रजों ने उत्तराखंड में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार किया। अंग्रजों ने तराई भाबर की ओर ध्यान दिया यहां लोग रहने से डरते थे। लेकिन अंग्रजों ने कई सारी इस क्षेत्र के लिए योजना बनाई।
साथ ही angrjobke समय में नैनीताल में देश ओर एशिया का पहला चर्च खोला गया। नैनीताल में आलू खेती करके उसे विदेशो में भेजा गया। भीमताल  भावाली अल्मोड़ा ओर बागेश्वर में चाय के बागान खोले और कई सारे स्कूल खोले साथ ही चर्च की स्थापना की।
1857 की क्रांति का उत्तराखंड में जायदा असर नहीं पड़ा।।



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