24 Jan 2021

इतिहास क्या है

इतिहास क्या है?
इतिहास क्या है  हर किसी का कुछ ना कुछ इतिहास है। जैसे मानव का इतिहास , किसी सभ्यता का इतिहास , किसी वस्तु का इतिहास , किसी देश का इतिहास । 
इतिहास के जनक हेरोटोड्स है
इतिहास सबका है पर उस को देखना का नजरिया सबका अलग है। किसी देश या सभ्यता के बारे सभी के अलग अलग नजरिए है।
इतिहास दो शब्दों से मिलकर बना । इति+हास 
अतीत में हुई घटना को इतिहास कहते है। 
अब इस इतिहास को जानने के कुछ ना कुछ स्रोत होते है। 
जैसे कोई सभ्यता है  जब उस सभ्यता की खुदाई की जाती है तब कुछ ना कुछ अवशेष मिलते है उसके आधार पर कहते है कि वह एक सभ्यता है । वहा से मिली वस्तु की कार्बन डेटिंग की जाती है उसके आधार पर कहा जाता है कि ये सभ्यता कितनी पुरानी है। 
किसी भी देश या सभ्यता के इतिहास को जानना बहुत कठिन है। 
इतिहास को जानने के स्रोत क्या क्या है।
इतिहास के स्रोत को तीन भागों में बांटा है
पुरातात्विक स्रोत  इन स्रोत में सिक्के अभिलेख लिपि , मुहर, आदि ।
साहित्यिक स्रोत किसी देश में लिखी गई पुस्तक ओर ताम्र लेख ।
विदेशी विवरण  किसी ना किसी देश में कोई ना कोई विदेशी यात्री आता था ओर वह अपने यात्रा वृतांत में कुछ ना कुछ उस देश के बारे में लिखता था।
भारत का इतिहास केसा था ओर इसकी शुरुआत कैसे हुई?
भारत में जब मानव की उत्पत्ति हुई थी ओर वर्तमान तक इतिहास का उल्लेख है।
प्राचीन काल में मानव केसे  रहते था क्या खाता था उसका जीवन कैसा था उसके सबूत भारत में भी है। मध्यप्रदेश के भीमबेटका की गुफा में प्राचीन काल के मानव के चित्र अंकित है। बिहार में प्राचीन काल के मानव निर्मित झोपड़ी मिली है।  भारत के इतिहासकारों ने इस पर रिचार्ज की है। 
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जानने के लिए इतिहासकारों ने कई  रिसर्च की है ओर उसके आधार पर बताया है।
प्रशन ये है कि सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में कैसे पता चलता है?
जब भारत में अंग्रेज़ कराची में रेल लाइन बिछाने के काम कर रहे थे तो अचानक से कुछ ईट का डेर मिला । 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई। 1920 ओर 1922 में हड़प्पा ओर मोहनजोदड़ो नामक स्थान की खोज की गई। उसके बाद कई मुद्रा ओर अभिलेख ओर अवशेष मिले है जैसे लोथल से मुहर के अवशेष ओर कालीबंगा में हल के निशान मिले है
स्नानागार ओर अनागार के अवशेष मिले है ।
इन अवशेषों से पता चलता है कि ये सभ्यता कितनी पुरानी है।
सिंधु घाटी का ही क्यो पड़ा इसका नाम क्योंकि  है इलाका सिंधु नदी के है इसलिए सिंधु सभ्यता इसका नाम पड़ा।







22 Jan 2021

भारत में स्कूल ओर कॉलेेज कब तक खुलेंगे

सभी बच्चो का यह सवाल की स्कूल ओर कॉलेज कब तक खुलेंगे 

 भारत करोना  वायरस आने के बाद सारे स्कूल 22 मार्च 2020 से बंद कर दिए गए उसके बाद सम्भावना लगाई गई की जुलाई में स्कूल खुल जाएंगे लेकिन नहीं । बाद में भारत सरकार ने स्कूल खोलने की जिमेदरी स्कूल के अध्यापक पर  छोड़ दी। स्कूल आध्यपको ने अविभावक से मीटिंग की ओर उनकी राय ली । अविभावक ने कहा कि जब तक वेक्सीन नहीं आ जाती तब तक हम अपने बच्चो को स्कूल नहीं भेजेंगे। 
नवम्बर में भारत सरकार ने 11ओर 12 क्लास के छात्रों के लिए स्कूल खोल दिए ये फैसला छात्रों ओर अविभावक पर था कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते है या नहीं। मार्च से लेकर नवम्बर तक 10ओर 12 की क्लास ऑनलाइन ली जाती थी । नवम्बर में स्कूल खुल जाने के बाद इनकी क्लास ऑफलाइन होने लगी इसके लिए स्कूल प्रबंधन को सचेत किया गया ओर पूरी जिम्मेदारी स्कूल को दी गई। अब 10ओर 12 की क्लास ऑफलाइन होने के बाद स्कूल ओर सरकार फैसला लेने वाली है की 9ओर11 की क्लास ऑफलाइन शुरू की जाएं  साथ ही कॉलेज खोलने का भी फैसला लेने वाली है भारत सरकार । 15 नवम्बर  से कालेज सिर्फ प्रेक्टिकल वाले विषय के लिए खोले गए थे लेकिन भारत सरकार अब सभी विषय के छात्रों के लिए कॉलेज खोलने का फैसला लेने वाली है । माना जा रहा है कि 15 फरवरी से कॉलेज पूरी तरह से खुल जाएंगे ।
अब स्कूल खुलने की पूरी संभावना है क्योंकि भारत में वेक्सीन आ गई है । पहले वेक्सीन ना होने के कारण स्कूल नहीं खुल रहे थे पर अब भारत में वेक्सीन आ गई है 
आनलाइन क्लास होने के फायदे ओर नुकसान 
भारत में जब करोना तेजी से फैलने लगा तो सभी स्कूल ओर कालेज बंद कर दिए गए ओर ऑनलाइन क्लास शुरू कर दी गई । ऑनलाइन क्लास के क्या फायदे हुए
जैसे बहुत से लोग डिजिटल हो गए ओर साथ ही ऑनलाइन क्लास होने से समय ओर बीमारी से संक्रमित होने से बच गए। इससे बच्चो के माता पिता को ये पता लगा कि उनके बच्चों को कितना समझ आता है या नहीं।
ऑनलाइन क्लास के फायदे कम ओर नुकसान ज्यादा है जैसे  ऑनलाइन क्लास होने के सबसे बड़ा नुकासन उन छात्रों को था जो गरीब परिवार से थे क्योंकि इनके पास एक अच्छा मोबाइल नहीं था ओर ना ही उनके पास इतना महेंगा रिचार्ज कराने के लिए पैसा ।
ऑनलाइन क्लास की दूसरी हानि या नुकसान यह है कि कई लोग गांव में रहते है जहां नेटवर्क नहीं आता ओर था ऑनलाइन क्लास में सबसे बड़ी बाधा है। अगर आते भी थे तो बीच में चले जाते थे ओर ये सबसे बड़ी बाधा थी ऑनलाइन क्लास की। 
बच्चो को फोन की लत ऑनलाइन क्लास होने के कारण कई बच्चो को फोन की लत लग गई ।
कई गांवों में नेट ओर फोन में नेटवर्क की बहुत समस्या है इससे पता चलता है कि गांव में नेटवर्क के क्या हालात है।
अगर बात करे तो भारत में स्कूल पूरी तरह से कब खुलेंगे 
एक अनुमान के अनुसार मार्च में तक स्कूल पूरी तरह से खुल सकते है।

21 Jan 2021

उत्तराखंड का इतिहास प्राचीन काल से वर्तमान तक

उत्तराखंड एक हिमालिय राज्य है ये देश का 11 हिमालय राज्य है। उत्तराखंड में अनेक जातियों और राजवंश ने राज किया। यहां की प्राचीन जाति कोल किरात थी । भोटिया को भी यहां को प्राचीन जनजाति माना जाता है । उत्तराखंड में नागो ने भी राज्य किया था चमोली से नाग जाति का लेख मिला है। उत्तराखंड में बौद्ध धर्म के अनयायियों को तपस्या करने के लिए भेजा जाता था। 
उत्तराखंड से कई सारे प्राचीन गुफा ओर शैल चित्र मिले है अल्मोड़ा से लघुउदियार जहा मानव ने नृत्य करते हुए चित्र अंकित है जो सुयाल नदी के किनारे स्थित है। चमोली ओर उत्तरकाशी से भी गवरखा गुफा जहा लाल रंग की आकृति मिली है।
समुदरगुप्त की प्रायग प्रशस्ति में उत्तराखंड का उलेख मिलता है । हेनसाग ने भी हरिद्वार को मायापुरी कहा है।

उत्तराखंड का सबसे प्राचीन राजवंश कुंडिद राजवंश था । इसके ज्यादा अभिलेख नही मिले है कुछ मुद्राएं प्राप्त हुई है जैसे अल्मोड़ा प्रकार की मुद्रा , छत्रेश्वर प्रकार की मुद्रा , अमोघभूती प्रकार की मुद्रा ये कुडिंद राजवंश का राजा था। इन मुद्राओं से इस राजवंश की जानकारी मिलती है।
उत्तराखंड का दूसरा प्राचीन राजवंश कत्यूरी राजवंश है इस राजवंश के कई अभिलेख ओर ताम्रपत्र प्राप्त हुए है जैसे बाघनाथ ओर जागेश्वर मंदिर से इस राजवंश के बारे में पता लगता है क्योंकि ये मंदिर कत्यूरी राजाओं ने  ही बनाएये राजा  शिवजी के  भक्त थे। कत्यूरी राजा का पहले निवास स्थान चमोली में था लेकिन बाद में ये बागेश्वर में आकर बस गए। इसके पीछे इतिहासकारों  ने कई कारण बताए है । कत्यूरी राजा भूदेव ने बौद्ध धर्म  का विरोध किया था। कत्यूरी राजाओं ने महाराजधिराज की उपाधि धारण की थी।  बाद में कत्यूरी राजवंश का विभाजन हो गया एक शाखा अस्कोट पिथौरागढ़ जा कर बस गई । उत्तराखंड के इतिहास में कत्यूरी शासनकाल को स्वर्णकाल  माना जाता है। कत्यूरी राजवंश का कैसे पतन हुआ इसके कई कारण थे अंतिम कत्यूरी  शासक वसंतदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोम चंद नाम के एक व्यक्ति से किया था। 
कत्यूरी के बाद उत्तराखंड में चंद राजवंश ने शासन किया ओर वहीं गंडवाल में परमार राजवंश राज कर रहा था
चंद राजवंश स्वतंत्र शासक नहीं थे  ये डोटी के शासक को कर देते थे। चंद राजवंश के स्वतंत्र शासक भारती चंद था। इसने डोटी के शासक को कर देने से मना कर दिया था।  चंद राजाओं का पहला ताम्रलेख अभय चंद का है। चंद राजा सोमचंद झुसी से आया था।  चंद राजाओं ने मुगल की अधीनता स्वीकार की थी ।  चंद राजा ने मुगल राजकुमार दारा शिकोह को कुमाऊं में शरण नहीं दी क्योंकि चंद राजा को डर था कि कहीं मुगल उन पर आक्रमण ना कर दे इसलिए चंद शासक ने मुगल राजकुमार को शरण नहीं दी ओर कहा की असली राजा तो गड़वाल में बैठा है मुगल राजकुमार दारा शिकोह परमार राज के पास चला गया ओर उसे वहा शरण मिल गई।
चंद राजा ने जनता पर 36प्रकार के कर लगाए थे।
 चंद राजाओं ने कई किलो का निर्माण किया जैसे खगमरा का किला , लाला मंडी का किला , बासुकी का किला, आदि किले बनाए साथ ही कई मंदिर का निर्माण का निर्माण किया जैसे अल्मोड़ा में नंदा देवी का मंदिर गोलजू देवता का मंदिर चमपवात में कई सारे मंदिर का निर्माण किया। चंद काल के समय में ही उत्तराखंड में पंचायत व्यवस्था शुरू हुई। मुगल शासक ने बाज बहादुर की उपाधि दी। नायक जाति का उदय भी चंद काल में हुआ इसका कारण यह था कि भारती चंद ने 10 वर्ष तक डोटी के शासक से युद्ध किया ओर इस युद्ध में कई सैनिकों के स्थानीय महिलाओं से सम्बद्ध बन गए ओर इनकी संतानों को नायक जाति के रूप में जानने लगे।
दूसरी ओर गड़वाल में परमार राजवंश राज कर रहा था परमार राजवंश  उत्तराखंड दो भागो में विभक्त था कुमाऊं ओर गड़वाल 
 गड़वाल में 888 ई में परमार राजवंश की स्थापना हुई इस राजवंश का सबसे शक्तिशाली राजा अजयपाल था इसने 52 गड़ जीत लिए थे इसे उत्तराखंड का अशोक ओर नेपोलियन भी कहा जाता है। इसने नया पाथा बनाया जो माप तोल के लिए प्रयोग किया जाता था।   अजयपाल को उपू गड़ के कफू चौहान ने टक्कर दी थी लेकिन अंत में वो भी अजयपाल से हार्ट गया इसके बाद अजयपाल ने गोरखनाथ संप्रदाय धारण कर लिया।
परमार राजाओं ने मुगल की अधीनता नहीं मानी। इस राजवंश में कई सारे चित्रकार ओर साहित्यकार ओर वेध थे। मोलाराम प्रसिद्ध चित्रकार था। जगतपाल का पहला भूमिदान लेख देवप्रयाग से मिलता है ओर लखन देव का पहला लेख प्राप्त होता है।
लोदियो ने परमार राजवंश के राजा को शाह की उपाधि दी। चंद ओर परमार राजा हमेशा आपस में लड़ते रहते थे
पुरिया को गड़वाल का चाणक्य कहा जाता है।
1790 में कुमाऊं पर गोरखा ने आक्रमण कर दिया। ओर 1792 में गड़वाल पर आक्रमण कर दिया लेकिन सफल नहीं हो पाए  लेकिन 1804  में गड़वाल में भूकंप आ गया ओर गोरखा ने गड़वाल में आक्रमण कर दिया अब दोनों मंडल में गोरखा का अधिकार था। इसमें हर्षदेव जोशी का महत्वूर्ण योगदान था। गोरखा का राजा नेपाल में होता था ओर उत्तराखंड में सूबा के द्वार शासन चलाया जाता था। गोरखा के कर ओर न्याय व्यवस्था बहुत खतरनाक थी। गोरखा ने कई नय प्रकार के कर लगाए इन्होंने ब्राह्मण पर भी कर लगाए ।   कुमाऊं की जनता के लिए ये कर कोई नए नहीं थे इस से पहले चंद राजा ने कई प्रकार के कर लगाए थे। गोरखा ने उत्तराखंड में बहुत लूट पाट की। वो यहां से दासो को नेपाल भेजते थे।
उनका युद्ध का प्रमुख हथियार खुकरी था। अंग्रजों ने भी गोरखा की वीरता की प्रशंसा की। कुमाऊं ओर गड़वाल के राजा गोरखा से परेशान हो गए थे तब सुदर्शन शाह ने अंग्रजों मदद मांगी ताकि गोरखा को यहां से भगा सके ।1815 में गोरखा ओर अंग्रेजो के बीच युद्ध हुआ जिसमें गोरखा को हार का सामना करना पड़ा। संगोली की संधि से ये युद्ध खतम हुआ । काली नदी के पार गोरखा का राज्य माना गया।
1815-1947 तक उत्तराखंड अंग्रेजो के अधीन था अंग्रजों ने यहां बहुत से अच्छे काम किए अंग्रेज़ ही उत्तराखंड में रेल लाइन लाए थे। साथ ही अग्रजो ने भूमि मापन प्रणाली की स्थापना की ओर आलू चाय ओर बागवानी शुरू की। अंगेजो ने कई स्कूल ओर  मिशनरी खोलो। अंग्रजों ने उत्तराखंड में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार किया। अंग्रजों ने तराई भाबर की ओर ध्यान दिया यहां लोग रहने से डरते थे। लेकिन अंग्रजों ने कई सारी इस क्षेत्र के लिए योजना बनाई।
साथ ही angrjobke समय में नैनीताल में देश ओर एशिया का पहला चर्च खोला गया। नैनीताल में आलू खेती करके उसे विदेशो में भेजा गया। भीमताल  भावाली अल्मोड़ा ओर बागेश्वर में चाय के बागान खोले और कई सारे स्कूल खोले साथ ही चर्च की स्थापना की।
1857 की क्रांति का उत्तराखंड में जायदा असर नहीं पड़ा।।



20 Jan 2021

भारत में बढ़ती जनसंख्या के फायदे ओर नुकसान

     

भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का दूसरा देश है
भारत में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है बड़ती जनसंख्या के जितने लाभ है उसे ज्यादा हानि है।
किसी देश को अधिक जनसख्या के क्या लाभ हो सकते है
आसानी से श्रमिक मिल जाना अधिक जनसंख्या वाले देश को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि उसे शारीरिक श्रम करने वाले मजदूर आसानी से मिल जाते है। भारत के पास पूंजी कम है ओर मजदूर की संख्या अधिक है।
भारत के कई लोग काम की तलाश में दूसरे  देश में जा रहे है । दूसरे देश में भारतीय श्रमिक को ये फायदे होते है कि  वहा उन्हें भारत के अपेक्षा  दूसरे देश में अधिक मजदूरी मिलती है जैसे कनाडा अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जितने डॉलर मुद्रा वाले देश है इन देश में भारतीय श्रमिक काम के लिए जा रहे है। इन देशों में भारतीय श्रमिक के जाने के कई कारण है जैसे इन देशों में  श्रमिक की संख्या कम है ओर इन देशों के पास पूंजी बहुत अधिक है ओर इन देशों को श्रमिक की आवश्यकता होती है । इन देशों की जनसंख्या कम है इसलिए भारतीय श्रमिक को यहां आसानी से काम मिल जाता है।
अधिक जनसंख्या वाले देश को दूसरा लाभ यह होता है कि देश को सैनिक आराम से मिल जाते है जैसे कई देशों में नियम है कि एक परिवार से एक सदस्य सैनिक होगा चाहे उसका मन हो या नहीं हो लेकिन भारत में इस प्रकार कोई दबाव नहीं है ओर ना ही भारत में इस प्रकार का कोई नियम है कि हर परिवार से एक सदस्य सैनिक होगा।
विदेशो में पलायन होने से विदेशी मुद्रा का भारत में आना - भारत में अधिक जनसंख्या होने के कारण कई लोग विदेशो में चले गए है वहा से वे लोग अपने घर परिवार वाले के लिए पैसे भेजते है जिससे भारतीय विदेशीय मुद्रा भंडार में वृद्धि हो रही है।
अधिक जनसंख्या में अगर देखे तो इसमें सबसे अधिक युवाओं की संख्या अधिक है जिससे  ये लाभ है कि भारत में बुजुर्ग जनसंख्या कम है। युवा जनसंख्या किसी भी देश के लिए महत्वूर्ण होती है।
अधिक जनसंख्या के लाभ कम है नुकसान अधिक है  जैसे
रोजगार में कमी अधिक जनसंख्या होने के कारण भारत में रोजगार में कमी आई है कई लोग भारत में बेरोजगार है कई लोग सरकारी नौकरी की तलाश में है भारत के पास सरकारी पद कम है ओर इन पद के लिए कई लोग है। मशीनीकरण के कारण भारत में कई लोग बेरोजगार हो गए है। अधिक जनसंख्या होने के कारण कई लोगो को उनकी योग्यता के बराबर रोजगार नहीं मिल पा रहा है। जिससे वे लोग विदेशो में जा कर अपनी योग्यता से वहा के देश के को फायदा दे रहे है।
अधिक जनसंख्या के कारण पर्यावरण में दबाव अधिक जनसंख्या होने के कारण पर्यावरण में भी दबाव पड़ता है जैसे एक परिवार में तीन बेटे है  ओर उन तीन बेटे को के लिए अलग अलग घर बनाना जिससे जमीन कम होने के कारण कृषि में भी कमी आ जाती है  जब जमीन का बटवारा होता है तो उससे जमीन छोटे छोटे भागो में बट जाती है। अगर इतने सारे मकान बनेगे तो पेड़ भी कटेंगे।
अधिक जनसंख्या वाले देश को वस्तुओं का आयात करना पड़ता है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ जाती है
क्या अधिक जनसंख्या वाले देश अधिक देश गरीब है विकसित 
अगर हम बात करे तो अधिक जनसंख्या वाले देश भारत ओर चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था है आज भारत दुनिया की पचवी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था है ।




11 Jan 2021

भारत में जनजातीय आंदोलन

जनजातीय  आंदोलन - जनजाति से आशय ऐसे नृजातीय समूह से होता है को किसी देश विशेष की मुख्य धारा  अलग होता है  । आधुनिक भारतीय इतिहास में  जनजाति शब्द का प्रयोग भारतीय  समाज की मुख्य  विशेषता- जातीय  व्यवस्था  से भिन्न समाज के लिए किया जाता था, जनजातीय  समुदाय भारतीय जीवन की मुख्य धारा के  पर्थक थे। इन समाजों  में सामाजिक एकता विद्यमान थी जबकि भारत के मुख्य समाज में सामाजिक स्तर पाया जाता था जबकि  जनजातीय समाज मुख्य समाज से पृथक रहा माना जाता है किन्तु  यह पूर्णतः  पृथक कुछ शिकार  एवम् खाद्य संगृहक  जनजाति के संदर्भ में ही सत्य है। इनके अतिरिक्त अन्य जनजातीय समाज प्राचीन काल से ही भारतीय समाज के अंग रहे है, इस कारण  इन समाजों में हिंदू समाज की अन्य विशेषताएं पाई जाती है क्योंकि ये जनजातीय  ऐतिहासिक काल से ही  मुख्य समाज के साथ  जुड़ी है। आधुनिक भारत में जनजातीय  द्वारा कृषकों एवं अन्य समुदाय की तुलना में अधिक विद्रोह  किया जाता था ओर उनके विद्रोह हिंसक भी होते थे। आधुनिक भारत में ये जनजातीय अपना निर्वाह स्थयी एवं अस्थाई (झूम) कृषि  खानो, कारखानों में  श्रमिक के रूप में करते थे।
अंग्रजों ने 18 वी शताब्दी एवम् 19 शताब्दी के प्रारंभ में साम्राज्यवादी  नीति का अनुसरण करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक भागों को अपने अधिकार में कर लिया। अंग्रेजो  ने जनजातीय व्यवस्थाओं के अलगाव को भी समाप्त किया ओर उन्हें पूर्ण  ऑपनिवेशिक  परिधि के अन्तर्गत के गए । अंग्रजों  द्वारा  कृषि के  वाणिज्यरण एवं अन्य आर्थिक नीतियों के चलते जनजातियों की अर्थ्यवस्था में अनेक बाहरी लोग  जैसे साहूकार ठेकेदार , व्यापारी  आदि प्रवेश करने लगे। ये जनजाति इन बाहरी लोगो को  हिन दृष्टि से देखती थी। अंग्रजों ने अपने इन मध्यस्थ  से जनजातीय  क्षेत्रों में भी ऑपनीवेशिक  अर्थ्यवस्थाओं का विकास किया जिससे जनजातीया शोषण के चक्र में फंस गयी। अनेक बार अंग्रेजो ने  जनजातीय समाज के मुखिया को जमींदार के रूप में मन्यता प्रदान कर दी गई। नई भू राजस्व व्यवस्था में  जनजातियों पर अनेक कर लाद दिए गए। अनेक जनजातीय समाज भी कृषक से किराएदार के रूप में परिवर्तित  हो गए। अंग्रेज़ अधिकारी पुलिस एवं अन्य कर्मचारी  भी जनजातीय पर आत्याचार  करते थे इससे जनजातीय अर्थव्यवस्था  विघटित  होने लगी थी और जनजातीय  संस्कृति भी विलुप्त होने लग गई थी।।
जनजातीय लोग अंग्रजों को अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। जनजातीय लोगो का मनना था कि अंग्रेजो ने उनकी सता का हरण कर लिया है।
जनजातीय लोगो ने अंग्रेजो के विरूद्ध विद्रोह करने की ठान ली। क्योंकि जनजातीय लोग प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते थे ओर झूम खेती करते थे पर अंग्रेजो के आने से जनजातीय लोगो पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए, जो जनजातीय लोगो को पसंद नी आया ।
 विद्रोह जा स्वरूप - आधुनिक भारतीय इतिहास में  भारत के लगभग सभी क्षेत्रो में हुए जनजातीय  विरोध आंदोलन का स्वरूप एक समान रहा है। जनजातियां किसी एक समूह से संबंधित होती थी। इसलिए  जनजातीय  आंदोलन किसी क्षेत्र से संपूर्ण  जनसमुदाय  से  सम्बन्धित होती थी।  इन आंदोलनों में किसी क्षेत्र  विशेष का संपूर्ण जन समुदाय आंदोलित हो उठता था। जनजातीय  समुदाय  खुद को  एक विशिष्ट पहचान के रूप में मानते थे।  एक जनजाति दूसरी जनजाति में तब तक आक्रमण नहीं करती थी जब तक वह उनके शत्रु की सहायता न कर रही हो, लगभग सभी  जनजातीय आंदोलन बाहरी लोगों के विरोध में हुए, किंतु इन आंदोलनकारी ने उन गेर  जनजातिय गरीबों के साथ कभी हिंसा नहीं की को जनजातीय गांव की अर्थ्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका भूमिका निभाते थे, जैसे तेली कुम्हार लोहार बुनकर  आदि बाहरी लोगो के नौकर थे। अनेक बार इन गेर जनजातीय लोगो ने  आंदोलन के दौरान विरोधी जनजातीय का साथ दिया। इन आंदोलनों ने बाहरी लोगो पर अचानक  आक्रमण किया एवम् उनकी संपति  लूटकर उन्हें गांवों से बाहर निकाल दिया। 
 कोल विद्रोह- (1820-1837)  यह विद्रोह छोटा नागपुर  क्षेत्र  में कोल जनजाति की द्वारा उनकी भूमि बेदखली  एवम् अन्य अत्याचारों के कारण किया गया। उनकी भूमि  मुस्लिम एवम् सीखो के पास चली गई थी परिणामस्वरूप कोलो ने 1831 में बाहरी लोगो पर आक्रमण  कर दिया। धीरे धीरे यह  विद्रोह  हजारीबाग सिंह भूम रांची पलाभद्र आदि क्षेत्रों में फैल गया अंग्रेजो ने एक सैन्य अभियान के द्वारा इस विद्रोह का दमन कर दिया।। 
 संथाल विद्रोह -  संथाल  छोटा नागपुर की एक अत्यंत महत्वपूर्ण जनजाति रही है। अंग्रेजो द्वारा  इस क्षेत्र में  ओपनिवेशिक अर्थव्यवस्था स्थापित होने से बाहर के लोग आने लगे। इन बाहरी लोगो तत्वों को संथालो ने ' दिकु '(विदेशी) कहा जाता था।  अंग्रेजो एवम्  उनके भारतीय सहयोगी ने यहां वकी अर्थव्यवस्था को छीन भिन कर दिया था।। इन क्षेत्रो में ईसाई मिशनरी भी सक्रिय थी यदपि  इन मिशनरियों ने जनजातीय क्षेत्रो में शिक्षा एवम् स्वास्थ्य सेवाओं का विकास किया। इसके अतिरिक्त अंग्रजों ने संथाल के वन अधिकार भी सीमित के दिए  फलस्वरूप राजमहल जिले में 1856 में संथाल ने दिकू के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। वे नहीं चाहते थे  कि दिकू लोग उनके क्षेत्रो में प्रवेश ना करे इसलिए संथाल ने जमींदारों साहूकारों , ओर बिट्रिश अधिकारियों पर हमला करना आरंभ कर दिया। संथाली ने सिद्धू ओर कान्हो के नेतृत्व में एक व्यापक आंदोलन की योजना बनाई। उन्होंने विविध गांवों में आंदोलन के लिए सूचनाएं भेजी ओर साहूकारों पर आक्रमण किया गया। साहूकार की संपति उनके दस्तावेजों सहित जला दी गई क्योंकि उनका मानना था कि ये दस्तावेज ही उनके शोषण का कारण है। सिद्धू ओर कान्हो ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया उनके नेतृत्व में हजारों संथाल एकत्रित हो गए। अंग्रजों ने संथाल की भूमि को रिग्युलेशन डिस्ट्रिक घोषित कर दिया ओर प्रथक इकाई बना दिया ओर संथाल क्षेत्र में शांति स्थापित हो गई।






4 Jan 2021

Theosophical Society (थियोसोफिकल सोसायटी)

थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका में मैडम एच. पी . ब्लवात्सकी ओर एस. ओलकाट द्वारा की गई। बाद में ये भारत आ गए  तथा 1886 में मद्रास के करीब अदियार  में उन्होंने सोसायटी का प्रधान स्थापित किया। 1893 में भारत में आने वाली  श्रीमती एनी बेसेंट के नेतृत्व में थियोसोफी आंदोलन जल्द भारत में फैल गया । थियोसोफिस्ट प्रचार करते थे की कि हिंदुत्व, पारसी, मत तथा बौद्ध मत जैसे प्राचीन  धर्मो को पुनर्स्थापित तथा मजबूत किया जाय। उन्होंने आत्मा के पुनरागमन के  सिद्धांत का भी  प्रचार किया ।

भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों मै एक था बनारस में केन्द्रीय हिन्दू कालेज की स्थापना , जिसे बाद में मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।




Young Bengal Movement. (यंग बंगाल आंदोलन)






इसकी स्थापना 1826 में बंगाल में की गई, जिसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता , जमींदारों द्वारा किए जा रहे अत्याचारो से रैयत  की  सुरक्षा , सरकारी नौकरी में ऊंचे वेतन के अंतर्गत भारतीय लोगो को नौकरी दिलवाना था। इसकी स्थापना  हेनरी विवियन डेरोजियो ( 1809-31) ने की थी । एगोलोइंडियन डेरेजियो ' हिंदू कालेज ' में अध्यापक थे, ये फ्रांस की क्रांति से बहुत प्रभावित थे।
 इन्होंने  आत्म विस्तार एवम् समाज सुधार हेतु ' एकेडमिक एसोसियेशन  एवम्  सोसायटी फॉर द एक्विजिशन of जनरल नॉलेज  की स्थापना की , इसके अलावा भी डेरेजियो ने एग्लो इंडियन हिंदू एसोसिएशन  बंगाहित  सभा डिबेटिंग क्लब का गठन किया । तत्कालीन भारत के कट्टर हिंदुओं ने डेरेजियो के विचारो का विरोध किया। डरेजियो ने ईस्ट इंडिया नामक दैनिक पत्र का भी संपादन किया।

2 Jan 2021

भारत में सामाजिक ओर धार्मिक सुधार आंदोलन (Social and Religious Reform Movement in India)

राष्ट्रवादी भावनाओ का विकास नई आर्थिक शक्तियों का उदय शिक्षा का प्रसार आधुनिक पश्चिमी विचारो तथा संस्कृति का प्रभाव तथा विश्व के बारे में पहले से अधिक जानकारी , इन सभी बातों ने भारतीय समाज के पिछड़ेपन तथा पतन के बारे में लोगों की चेतना को बढ़ाया ही नहीं , बल्कि सुधार के संकल्प को और मजबूत किया।
ब्रह्म समाज  राजा राममोहन राय ने 1829 ई में ब्रह्म सभा नाम से एक नए समाज की स्थापना की । जिसे आजे चलकर ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया। राजा राममोहन राय की उस परम्परा को 1843 के बाद देवेंद्रनाथ ठाकुर ने आगे बढाया । उन्होंने  इस  सिद्धांत का खंडन किया की वैदिक ग्रंथ अनुल्लघनिय हैं।
1866 के बाद इस आंदोलन को केशव चन्द्र सेन ने जारी रखा।
आदि ब्रह्म समाज  (ब्रह्म समाज के विभाजन के बाद) इसकी स्थापना 1866 में आचार्य केशव चन्द्र सेन कलकता में की गई जिसका उद्देश्य स्त्रियो की मुक्ति , विद्या का प्रसार ,सस्ते साहित्य को बांटना  महा निषेध , दान देने पर अधिक बल देने था।
1878 में केशव चन्द्र सेन ने अपनी तेरह वर्षीय अल्पायु पुत्री का विवाह  कूचबिहार  के महाराजा केंसाथ वैदिक रीति रिवाज  के अनुसार करने के कारण इस समाज में एक ओर विभाजन हो गया। केशव के अधिकतर समर्थको ने अलग होकर 1878 में एक अलग संस्था  "साधारण ब्रह्म समाज" की स्थापना कर ली।

महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार
बम्बई प्रांत में धार्मिक सुधार कार्य का आरंभ 1840 में परमहंस मंडली ने किया । इसका उद्देश्य  मूर्तिपूजा तथा जाति प्रथा का विरोध करना था । पश्चिम भारत के पहले धार्मिक सुधारक  संभवतः  गोपाल हरि देशमुख थे जिन्हें  जनता  ' लोकहितवादी ,' कहती थी।

प्रार्थना समाज 
इसकी स्थपना 1867  में बम्बई  में आचार्य केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेंव गोविंद रानाडे , डॉ आत्माराम पांडुरंग और चंद्रावरकर आदि के नेतृत्व में हुई । इसका उद्देश्य  जाति प्रथा का विरोध , स्त्री पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि , विधवा विवाह , स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन  , देना आदि था। 
इसी संस्था के सहयोग से कालांतर में दलित जाति मंडल , समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। पंजाब में इस समाज का प्रचार प्रसार  में दयाल सिंह प्रन्यास ने किया।

रामकृष्ण मिशन
इसकी स्थापना 1896-97 में स्वामी विवेकानंद ने सर्वप्रथम  कलकत्ता के  समीप  बेलूर में की।
नरेंद्र नाथ दत (स्वामी विवेकानंद 1863-1902)  संस्थापक ओर रामकृष्ण परमहंस मुख्य प्रेरक  थे।
1893 मै स्वामी विवेकानंद ने शिकागो  में हुईं धर्म संसद में भाग लेकर  दुनिया को भारतीय संस्कृति ओर दर्शन से अवगत कराया।
महाराज खेतड़ी के सुझाव पर नरेंद्र नाथ ने अपना नाम स्वामी  विवेकानंद  नाम रखा था।




एक अच्छे YouTuber केसे बने






एक अच्छे यूटूबर कैसे बने
आजकल सब यूट्यूब पर वीडियो बनाते है कुछ लोगो का  शौक होता है वीडियो बनाना तो कुछ लोग ऐसे भी होते है जो लोग यूट्यूब वीडियो के माध्यम से पैसा कामना चाहते है।
एक अच्छे युटूबर बनने के तरीके
वीडियो सर्च अगर आप यूट्यूब ओर प्रसिद्ध होना चाहते है तो आप को अपनी वीडियो शेयर करने के बजाय लोगो से सर्च करवानी चाहिए इससे आपकी वीडियो लोगो की सर्च लिस्ट में जाएगी जिससे आपकी वीडियो रैंक करेगी जितनी अच्छी रैंक होगी वीडियो की उतने ही अच्छे व्यू आएगे आपकी वीडियो में ।

वीडियो सर्च करने के फायदे ये है कि वीडियो सर्च लिस्ट में चली जाती है जिसे यूटयूब सबसे ऊपर उठता है ।
थम बेनल जब आप वीडियो बनाते है तो उस वीडियो में थंबनेल होना जरूरी है ताकि लोगो को पता चले की वीडियो किस विषय पर बनाई गई है जितना अच्छा वीडियो थम बेनल होगा । वीडियो में व्यू आने की संभावना होगी।