बौद्ध धर्म ( buddh dhram)
गौतम बुद्ध का जीवन चरित्र जिसने ब्राह्मण धर्म को सबसे भारी आघात पहुंचाया था, महावीर के प्रसिद्ध समकालीन गौतम बुद्ध द्वारा प्रारंभ किया गया था। नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के शाक्य जाति के शुद्धोधन के पुत्र थे। उनकी माता पाशर्वृत कोलीय कुल की राजकुमारी थी कपिलवस्तु से कुछ मील दूरी लुंबिनी ग्राम में 566 ईसा पूर्व मैं उनका जन्म हुआ था। यह स्थान आज सम्राट अशोक के रूमिंदेह स्तम्भ पर 249 ईसा पूर्व अभिलेख है , सुशोभित है। प्रसव पीड़ा से माता का देहांत हो गया तू इनका पालन-पोषण इनकी मौसी गौतमी ने किया। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
बाल्यकाल से ही सिद्धार्थ में चिंतन प्रवृत्ति दयालुता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगी। गौतम बुध का विवाह यशोधरा नामक सुंदर राजकुमारी से हुआ। अपनी आयु के 29 वें वर्ष 533 ईसा पूर्व सन्यासी जीवन द्वारा सत्य की खोज करने के लिए अपना घर छोड़ दिया। गृह त्याग महाभिनिष्क्रमण के नाम से प्रसिद्ध है।
निरंतर 6 वर्षों टकवे सन्यासी का जीवन व्यतीत करते रहे इस काल में उन्होंने दो ब्राह्मण आचार्यों के आश्रमों में अध्ययन किया। एक देना बुध पीपल के वृक्ष के नीचे ट्रण के आसन पर बैठ गए। यहां उन्हें सहसा सत्य के दर्शन हुए एवं ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्हें यहां प्रकाश मिला की शांति मैं ही है, उन्हें उसकी खोज करनी चाहिए। यही महान बुद्धत्व कहलाए। इस प्रकार अपनी आयु के 35 वें वर्ष में बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त किया। इसके बाद वे वाराणसी के समीप हाथ में हिरण कुंज मैं गए और अपना धार्मिक उपदेश दिया, जिसके परिणाम स्वरूप उनके पांच से शुरू हो गए। कौशल नरेश प्रसनजीत एवं मगध नृपति बिंबिसार तथा अजातशत्रु मैं उनके सिद्धांतों को अंगीकार कर लिया और उनके शिष्यों गए उन्होंने अपने अनुयायियों साधुओं का एक संघ स्थापित किया। 80 वर्ष की अवस्था में 486 ईसा पूर्व मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कुशीनगर वर्तमान कासिया मैं निवारण प्राप्त किया। इस घटना को महापरिनिर्वाण कहते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ इसी पूर्णिमा के दिन इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ इनका निवारण भी वैशाख पूर्णिमा को ही हुआ विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण किसी अन्य जीवन में नहीं मिलता।
महात्मा बुद्ध के सिद्धांत गौतम बुद्ध ने कोई नवीनतम धर्म या संप्रदाय स्थापित करने का प्रयास नहीं किया।
बुद्ध ने अपने अनुयायियों को चार आर्य सत्य का उपदेश दिया। यह सत्य निम्नलिखित थे जैसे दुख ,दुख का कारण, दुख का दमन और दुख के शमन का मार्ग
दूसरे शब्दों में उन्होंने बताया कि जीवन में कष्ट है, इस कष्ट का मूल कारण है कारण को नष्ट करके इस कष्ट का निवारण किया जाता है। कष्ट का कारण भौतिक वस्तु का सुख भोगने की वासना और इच्छा। यह तृष्णा मानव की जन्म और मृत्यु का कारण है। जब यह तृष्णा या जीवन का मोह मनुष्य में नहीं रहता है, तभी आत्मा के लिए निवारण प्राप्त करना संभव हो सकता है, इस तृष्णा का इस प्रकार विनाश किया जाए, यही मनुष्य की अच्छा है। बुद्ध ने बताया कि इस तृष्णा का विनाश लिए आश्तागिक मार्ग के अनुकरण से ही हो सकता है
सत्य दृष्टि या विश्वास , इन चार सत्य का बुद्ध ने अपने प्रथम धर्म उपदेश मैं वर्णन किया है उनका ज्ञान और उनमें विश्वास और श्रद्धा
सत्य भाव। इसका अर्थ यह है कि हमें विलासिता की वस्तुओं को त्याग देना चाहिए एवं किसी से ना तो किसी से ईर्ष्या या द्वेष रखना चाहिए और ना दूसरों को कष्ट पहुंचाना चाहिए।
बौद्ध धर्म की महासभा और धार्मिक ग्रन्थ - जब अपनी मृत्यु पर थे उन्होंने अपने पैसे से आनंद से कहा था कि जिस संघ की स्थापना की है क्या नियमों को मेरे देहांत की बाद तुम सब के लिए शिक्षक होने दो। अतः बुद्ध की मृत्यु के थोड़े समय पश्चात ही बौद्ध धर्म की प्रथम महासभा 446 ईसा पूर्व राजगृह के समीप सतपनी गुहाओं मैं धर्म धर्म सिद्धांतों एवं विनय संघ के नियमों के संकलन के हेतु हुए थी। विभिन्न स्थानीय संघ के 500 भिक्षुगण प्रतिनिधि के रूप में इस में भाग लेने के लिए एकत्र हुए। उन्होंने प्राथमिकता से बुद्ध के उपदेशों को दो भागों में विभाजित कर दिया विनय पिटक और धम्मपिटक। कुछ शताब्दी बाद, लगभग 90 शब्दों में इन्हें लंका में पाली भाषा में लिपिबद्ध के दिया।