आंगल मैसूर युद्ध
मैसूर मैसूर में हैदर अली के बढ़ते प्रभाव तथा दक्षिण भारत की राजनीति में अपनी प्रभावी भूमिका के कारण अंग्रेजों ने मैसूर राज्य पर हस्तक्षेप का निश्चय किया ।
इस प्रकार प्रथम आंगल मैसूर युद्ध 1767-1769 में अंग्रेजों की आक्रमक नीति का प्रमाण था हैदर अली मैसूर के शासक अंग्रेजों से युद्ध करने दक्षिण के अन्य दो प्रमुख शक्तियां मराठी तथा निजाम से संधि कर एक संयुक्त मोर्चा बनाया युद्ध के दौर में निजाम ने विश्वासघात किया और वह अंग्रेजों के पक्ष में चला गया मराठे तटस्थ रहे फिर भी हैदर अली ने अंग्रेजों को पराजित किया फल स्वरूप 1769 ईस्वी में मद्रास की संधि शांति स्थापित हुई पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्र वापस कर दिए।
1773 ईस्वी में अंग्रेजों ने मैसूर स्थित माहे फ्रांसीसी क्षेत्र पर अधिकार कर रवि को फिर से चुनौती दी हैदर अली ने 1780 में कर्नाटक पर आक्रमण कर
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध प्रारंभ किया ।
1780-1782 दूसरा मैसूर युद्ध
1782 में हैदर अली ने अंग्रेजी सेना को पराजित कर दिया घायल हो गया मैं तो 7 दिसंबर 1782में उसकी मृत्यु हो गई, उसकी मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र टीपू ने युद्ध जारी रखा टीपू ने युद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना के ब्रिगेडियर मैथ्यूज को 1783 1783 में बंदी बना लिया, अथवा 1784 में दोनों पक्षों में मंगलौर संधि हो गई दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र वापस कर दिए। परंतु दोनों पक्षी युद्ध का पद करते रहे अंततः
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध 1790 से 1792 तक।
1792 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने टीपू को श्रीरंगपट्टनम स्थित किले में घेरकर संधि के लिए विवश कर दिया परिणाम स्वरूप मार्च 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि संपन्न हुई जिसने अपने राज का आधा भाग अंग्रेजों को देना पड़ा युद्ध के हर्जाने के रूप में तीन करोड़ रूपए देने के लिए विवश किया गया तथा रुपए चुकते होने तक पुत्रों को अंग्रेजों ने बंधक बना दिया। टीपू की व्यवस्था अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा के कारण संघर्ष हो गया जो संघर्ष चतुर्थ मैसूर युद्ध 1799 कह लाता है इस अंतिम युद्ध में पुणे अंग्रेजी सेना का सामना किया और वह युद्ध में वीरगति प्राप्त हो गया। मैसूर में अंग्रेजों का शासन लागू हो गया।
अंग्रेजों ने की गद्दी परअंग्रेजों ने की गद्दी पर पुनः आड यार वंश के बालक कृष्ण राज जो की आयु का था को अपने संरक्षण में प्रतिस्थापित किया तथा कनारा, कोयंबटूर और श्रीरंगपट्टनम को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल कर लिया।
अंगल-सिख युद्ध
सिख सिख शक्ति एक संगठित शक्ति के रूप में भारतीय मानचित्र रणजीत सिंह के नेतृत्व में उभरी,1805 इसवी तक रणजीत सिंह ने अमृतसर एवं जम्मू पर भी अधिकार कर लिया इस प्रकार पंजाब की राजनीतिक राजधानी लाहौर धार्मिक राजधानी अमृतसर दोनों पर रणजीत सिंह प्रभुत्व स्थापित था। नेपोलियन बोनापार्ट की बढ़ती शक्ति एवं फ्रांस और रूस की मित्रता के कारण अंग्रेज उत्तर-पश्चिम सीमा को असुरक्षित रहे थे। अतः उन्होंने 25 अप्रैल 1809 ई को रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की संधि कर ली, जिसकी मुख्य व्यवस्था की सतजल नदी दोनों राज्यों के बीच एक सीमा मान ली गई। 1823 ई तक रणजीत सिंह और अंग्रेज दोनों अलग अलग क्षेत्र में राज्य विस्तार करते रहे तथा अंग्रेजों ने उसके जीवित रहते जॉब पर आक्रमण नहीं किया। 1839 ई रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई, अगले 4 वर्षों में अयोग्य उत्तराधिकारी,( खड़क सिंह नौनिहाल सिंह, शेर सिंह) गद्दी पर बैठे मुझसे पंजाब में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई। 1843 में महाराजा रणजीत सिंह का अल्पायु पुत्र दिलीप सिंह राजमाता झिंदन के संरक्षण में सिहासन पर बैठा।दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया परिणाम स्वरूप प्रथम अंगल सिख युद्ध हुआ
प्रथम अंगल- सिख युद्ध 1845 से 1846 तक के समय अंग्रेजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर जनरल लॉर्ड तथा हुगफ इस समय भारत में प्रधान सेनापति थी। अंग्रेजी सेना ने सर हुगफ नेतृत्व में 13 दिसंबर 1845 को मुदकी में लाल सिंह के नेतृत्व वाली सिख सेना को पराजित किया। सिख सेनाओं को क्रमशः फिरोज शाह, ओलीवाल, सोवराव में पराजित होने के बाद अंग्रेजों के साथ लाहौर की संधि करने के लिए विवश होना पड़ा। लाहौर की संधि के 8 मार्च 1846 अनुसार
1 सिखों ने सतजल नदी के दक्षिणी और के सभी प्रदेश अंग्रेजों को सौंपे।
2 सिखों ने डेढ़ करोड़ रुपए हर्जाना देना स्वीकार किया।
3 सिखों ने सेना मेंकटौती कर 20,000 पैदल सेना 12000 घुड़सवारी तक सीमित किया।
4 एक ब्रिटिश रेजिडेंट को लाहौर में नियुक्त किया।
लाहौर संधि के पश्चात अंग्रेजों ने पंजाब से कश्मीर को पृथक कर रुपए में गुलाब सिंह को बेच दिया। 16 दिसंबर 1846 ई को भैरोवाल किस संधि द्वारा दिलीप सिंह के वयस्क होने तक ब्रिटिश सेना का लाहौर में रहना आवश्यक कर दिया। राजमाता झिंदन को 48000 की वार्षिक पेंशन पर शेखपुरा भेज दिया तथा लाहौर का प्रशासन 8 सिखो सरदार एक परिषद को सौंप दिया गया। इन समस्त कार्यवाही से सिख सेना औरअन्य प्रभावशाली सिख नेता अपमानजनक तथा क्रोधित हुए जिसके फलस्वरूप द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध 1848 से 1849 तक हुआ।
दूसरा अंगल- सिख युद्ध 1848 से01849तक 13 जनवरी 1849 में सेनानायक शेर सिंह ने लॉर्ड हुगफ अंग्रेजी सेना नायक को कड़ी टक्कर दी * 21 फरवरी 1849 के गुजरात युद्ध में चार्ल्स नेपियर ने सिखों को पराजित कर दिया, इस युद्ध के जीतने के पश्चात लॉर्ड डलहौजी ने 1849 इसी को आपका अंग्रेजी राज्य कंपनी के अंतर्गत विलय कर लिया। राजा दिलीप सिंह को अंग्रेजों ने पांच लाख रुपए वार्षिक पेंशन पर रानी झिंदन के साथ इंग्लैंड भेज दिया।